लघु सिद्धांत कौमुदी पर आधारित विकरण प्रत्ययों का वर्णन
विकरण प्रत्यय –
तिड्न्त प्रकरण में विकरण प्रत्ययों का वर्णन विस्तार से किया गया है तथा जो प्रत्यय प्रकृति तथा प्रत्यय के सहायक के रूप में ठहरते हैं उन्हें विकरण नाम सौकार्य के कारण दे दिया गया है।
इससे पूर्व प्रथम विकरण प्रत्यय क्या होते हैं तथा कौन से है इसका वर्णन करना आवश्यक है–
धातुओं के गण –
भ्वाद्यदादिजुहोत्यादिदिवादिस्वादिरेव च।
तुदादिश्च रुधादिश्च तनादिक्रीचुरादयः।।
धातुओं के दश गुण होते हैं तथा सभी धातुओं से सामान्य रूप से एक विकरण प्रत्यय होता है परंतु अपवाद स्वरूप गणों से पृथक पृथक भी विकरण प्रत्यय होते हैं।
दश गण
भ्वादिगण
अदादिगण
जुहोत्यादिगण
दिवादिगण
स्वादिगण
तुदादिगण
रुधादिगण
तनादिगण
क्रयादिगण
चुरादिगण
सामान्यतः भी गण की धातुओं से शप् प्रत्यय होता है, परंतु अपवाद स्वरूप अन्य भी विकरण प्रत्यय होते हैं।
गण विकरण प्रत्यय सूत्र उदाहरण
भ्वादिगण शप् कर्त्तरि शप् भवति
अदादिगण शब्लुक् अदि प्रभृतिभ्यः शपः अन्ति
जुहोत्यादिगण शप्श्लु जुहोत्यादिभ्यः श्लुः जुहोति
दिवादिगण श्यन् दिवादिभ्यः श्यन् दिव्यति
स्वादिगण श्नु स्वादिभ्यः श्नुः सुनोति
तुदादिगण श तुदादिभ्यः शः तुदति
रुधादिगण श्नम् रुधादिभ्यः श्नम् रुणद्धि
तनादिगण उ तनादिकृञ्भ्यः उः तनोति
क्रुयादिगण श्ना क्रयादिभ्यः श्ना क्रीणाति
चुरादिगण शप् कर्त्तरि शप् चोरयति
उपरोक्त सारणी से सामान्यतया धातुओं पर आधारित विकरण प्रत्यय स्पष्ट होते हैं तथा इनके अंतर्गत भी कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो अपवाद रूप में उपस्थित हैं-
(श्रुवः शृ च) से ‘श्रु श्रवणे’ धातु से श्नु विकरण तथा धातु को शृ आदेश होता है जिससे शृणोति आदि रूप भी निष्पन्न होते हैं।
(धिन्विकृण्व्योर च) से धिनोति तथा कृणोति आदि रूप भी गणविहित प्रत्यय न होने से भी श्नु प्रत्यय अपवाद स्वरूप होते है।
लकारों पर आधारित विकरण प्रत्यय –
संस्कृत में वर्तमान भूत एवं भविष्य अर्थों में या कालों में पृथक पृथक लकार होते हैं उन्हीं लकारों पर आधारित सार्वधातुक तथा आर्द्धधातुक भी विकरण प्रत्यय होते हैं।
1. लट् लकार सार्वधातुक लकार है तथा इसमें सामान्यतया निजगणीय धातुओं से पृथक् पृथक् विकरण प्रत्यय होते हैं।
जैसे – भवति, अन्ति, जुहोति, दीव्यति।
2. लिट् लकार आर्द्धधातुक लकार है जिसकी (लिट् च) सूत्र से आर्द्धधातुक संज्ञा विहित है तथा इस लकार में कोई भी विकरण प्रत्यय नहीं है।
जैसे – बभूव, पेचे, चक्रे, चक्राते, चक्रिरे।
3. लुट् लकार एक सार्वधातुक गण है तथा इसमें सामानयतया (स्यतासी लृलुटोः) से लुट् लकार तास् विकरण प्रत्यय होता है।
जैसे – भविता, पठिता, देविता।
4. लृट् लकार एक सार्वधातुक प्रत्यय है, इसमें सामान्यतया (स्यतासी लृलुटोः) सूत्र से ही स्य विकरण होता है।
जैसे – भविष्यति, रोदिष्यति, क्रेष्यति।
5. लोट् लकार एक सार्वधातुक प्रत्यय है, इसमें सामान्यतया स्वगणीय धातुओं से ही पृथक्–पृथक् विकरण प्रत्यय होते हैं।
जैसे – पठतु, क्रीणातु, सुनोतु।
6. लड् लकार एक सार्वधातुक प्रत्यय है, इसमें सामान्यतया स्वगणीय धातुओं से ही पृथक्–पृथक् विकरण प्रत्यय होते हैं तथा इसमें अटागम भी होता है।
जैसे – अपठत्, अभवत्, अक्रीणीत।
7. विधिलिड् लकार एक सार्वधातुक प्रत्यय है, इसमें सामान्यतया स्वगणीय धातुओं से ही पृथक्–पृथक् विकरण प्रत्यय होते हैं तथा परस्मैपदी धातुओं से यासुटागम एवं सुटागम होता है।
जैसे – पठेत्, कुर्यात्, भवेत्।
8. आशीर्लिंग लकार एक आर्धधातुक प्रत्यय है, इसमें सामान्यतया धातुओं से सीयुटागम होता है तथा कोई भी विकरण प्रत्यय नहीं होता है।
जैसे – पठ्यात्, पठ्यास्ताम्, पठ्यासु।
9. लुड् लकार एक सार्वधातुक प्रत्यय है तथा इसमें (च्लि लुंडि्) से लुंड् परे रहते च्लि विकरण होता है तथा च्लि के स्थान पर अंगादि आदेश भी होते हैं तथा इसमें भी अटागम होता है।
जैसे – अकार्षीत्, अदर्शत्, असरत्।
10. लृंड् लकार एक आर्द्धधातुक प्रत्यय है, तथा इसमें (स्यतासी लृलुटोः) सूत्र से लृड् लकार परे रहते स्य विकरण होता है।
जैसे – अकरिष्यत्, अभविष्यत्।
कर्म तथा भाव पर आधारित विकरण प्रत्यय –
संस्कृत भाषा में लकार (लः कर्मणि चाभावे चाकर्मकेभ्यः) सूत्र से लकार कर्तृवाच्य तथा भाव अर्थ में अकर्मक धातुओं से एवं सकर्मक धातुओं से लकार कर्त्ता तथा कर्म अर्थ में होते हैं।
उसी अर्थ में सभी सार्वधातुक धातुओं से (सार्वधातुके यक्) से सार्वधातुक लकार परे रहते यक् प्रत्यय होता है।
जैसे – पठ्यते, क्रियते, क्रीयते।
by Pradyumna
0 Comments