दुःखों का कारण

दुःखों का कारण


    परमात्मा ने जीव को दुःख सहने के लिए भेजा है‍‍? नही। आत्मा शुद्ध पवित्र अलौकिक है। अल्पज्ञ होने के कारण अपने को भूलकर प्रकृति को ही सब कुछ समझ कर और दुःख का कारण हो जाता है। वैदिक शिक्षा के अनुसार दुःख तो तीन प्रकार के बतलाए हैं, आदिदैविक, आदिभौतिक और आध्यात्मिक। मगर आज भौतिक विज्ञानवाद के समय में जहां काम, पदार्थ बहुतायत से पैदा हो रहे हैं वहां दुखों की बढ़ती को भी स्थान दिया गया है। तीनों प्रकार के दुखों में आदिदैविक दुःख तो मनुष्य की शक्ति से बाहर है, मगर अन्य प्रकार के दुःख जो हमने मानसिक विकारों व अज्ञानतावश मान रखे हैं। आदमी के ही अंतर्गति हैं। अन्य दुःखों को पुरुषार्थ द्वारा निवारण सम्भव है।

1. नाना प्रकार की शोभा, श्रृंगार की  वस्तुऐं जिनका शुद्ध अर्थ व काम से कोई भी संबंध नहीं है, जो मन, बुद्धि, आत्मा चिंतन में बाधक मोक्ष मार्ग से विमुख करने वाले हैं।

2. काल्पनिक दुःख - नाना प्रकार के अन्न, वस्त्र पशु  होते हुए भी वैज्ञानिक रेडियो, मोटर आदि के अभाव से अपने पडोसियों को देखकर दाह करना व दुःखित होना।

3. रिवाजी दुःख -  जो व्यर्थ में रिवाज की वजह से दूसरों से कर्ज लेकर पूर्ण करना।

4. आदती दुःख - जो व्यर्थ में आदत के अनुसार बीड़ी, भांग, चरस, शराब आदि में खर्च करना। 

5. काल्पनिक दुख - शोक का होना दिशा सूल, काम, क्रोध, लोभ, मोह से दुख पैदा कर।

6. भ्रम वश भूत प्रेत के चक्कर में झाडने वालों के बस में बैठकर व्याय करना।

7. स्वाद और डाट बाट के वशीभूत हो, अनेक पदार्थ, वस्त्रों में व्यय करना, अनेक भिन्न पदार्थों का एक साथ सेवन करने से रोगों की उत्पत्ति कर इलाज में पैसे व्यय करना।

8.  प्राकृतिक रोग चिकित्सा को न जान,अविश्वास,आलसवश प्रमाद,आलस में पडे स्वयं, अपने का ज्ञान न होना,चटकीले भड़कीले पदार्थों में फंसना,असत्य व्यवहार करना,सत्य को झूठ, आदि को अनादि समझना।



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